Kumar Vishwas Shayari: Today we have brought specially for you some very selected poetry of Dr. Kumar Vishwas, which you will surely like.
डॉ. कुमार विश्वास बहुत ही अच्छे हिंदी कवि है, इनके द्वारा लिखी गई शायरी हर व्यक्ति के द्वारा पसंद की जाती है। उनके द्वारा लिखी कविताएं और शायरी पढ़ने के बाद आप उनके दीवाने हो जायेंगे। तो अभी पढ़ना शुरू कीजिये और इनका आनंद लीजिये साथ सी साथ अपने प्रियजनों के साथ भी शेयर कीजिये।
New Kumar Vishwas Shayari
मैं उसका हूँ वो इस एहसास से इनकार करती है
भरी महफ़िल में भी, रुसवा हर बार करती है
यकीं है सारी दुनिया को, खफा है हमसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है
मोहब्बत एक अहसासों की, पावन सी कहानी है,
कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है,
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं,
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है।
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझाता है,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है।
मै तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है।
वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है
तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता है
हमारी आखँ का आँसूं , ख़ुशी पाने से डरता है
अज़ब है लज़्ज़ते ग़म भी, जो मेरा दिल अभी कल तक़
तेरे जाने से डरता था वो अब आने से डरता है.!
उसी की तरह मुझे सारा ‘ज़माना’ चाहे,
वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे,
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा,
ये मुसाफिर हो कोई ठिकाना चाहे।
“कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम
बिन. भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम
बिन ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने कभी
तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन.”
कहीं पर जग लिए तुम बिन,
कहीं पर सो लिए तुम बिन,
भरी महफिल में भी अक्सर,
अकेले हो लिए तुम बिन,
ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है
अपने कभी तो हंस लिए तुम बिन,
कभी तो रो लिए तुम बिन.!
जिंदगी से लड़ा हूँ तुम्हारे बिना
हाशिए पर पड़ा हूँ तुम्हारे बिना
तुम गई छोड़कर, जिस जगह मोड़ पर
मैं वहीं पर खड़ा हूँ तुम्हारे बिना.!
सालों बीत जाते हैं तिनका तिनका सिमटने में
तब कहीं जाकर हो पाते हैं घोंसले मयस्सर,
कमियां नहीं पैदा कर पाती दूरियां कभी, सीमा,
बस खुदगर्जी की चिंगारी ही हवा दे जाती है अक्सर ।